दिलवालों की दिल्ली – Poem about New Delhi
This is a poem about Delhi I wrote in the Hindi language. Many years ago, I had written this poem to talk about the numerous issues that trouble Delhiites – from potholes and road rage to power cuts, overcharging and more. Sadly, not much has changed over the years.
भारत की राजधानी दिल्ली, दिलवालों की मतवाली दिल्ली
यहाँ जो न आए वह आना चाहे और जो आए वह बहुत पछताए
यहाँ की सडकें ऐसी मानो गढ़ों की हो बिछी तशतरी
सड़कों पर है रोड रेज का बोलबाला
जल्दी मे है हर एक दिल्ली वाला
अपनी लेन छोड़ने की कसम सबने खाई है
और आगे निकलने की रेस मे कितनो ने जान गवाई है
ट्रैफिक रूल्स तोड़ने का यहाँ फैशन बहुत बड़ा
कहीं चालान ना हो जाये इससे कोई कब डरा
ऑटो वालों से इंसानियत की उम्मीद करना फ़िज़ूल है
‘मीटर ख़राब है’ ऐसा कह मुह मांगी कीमत लेना इनका उसूल है
औरतों की इज्ज़त करना यहाँ किसी ने सीखा ही नही
दिल्ली मेट्रो की लेडीज सीट पर भी आदमियों की सेना चढ़ी
आये दिन यहाँ कई घंटों के लिए बत्ती गुल हो जाती है
अँधेरा जिन्हें पसंद नहीं उन सब की शामत आती है
दूकान दार भी ग्राहकों को उनके स्टेटस से पहचानते हैं
यदि आपमें दम नही तो वह आपको अनदेखा कर जाते हैं
अखबार के पन्ने केवल चोरी डकैती और जालसाजी के ख़बरों से भरपूर है
क्या यही वह दिल्ली है जिसपर दिल्ली वालों को इतना गुरूर है?
Also Read: My review of Promenade Mall, New Delhi – What’s to Like
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Photo by Igor Ovsyannykov on Unsplash
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